
सवारी 2 व 4 पहिया ईंधन से चलने वाले वाहन की,भत्ता मिलता सायकल से चलने का,पौष्टिक आहार के मिलते हैं 100 रुपये, पता नहीं कहां मिलता है ऐसा पौष्टिक आहार
विसंगतियों के कारण ही पुलिस कर्मियों का परिवार बार-बार कर रहा आंदोलन,आंदोलन के माध्यम से पुलिसकर्मियों के परिजनों की मांग विसंगतियों को दूर करो सरकार
रवि सिंह –
बैकु΄ठपुर 18 नवम्बर 2021 (घटती-घटना)। पुरवर्ती भाजपा सरकार में एकाएक पुलिस परिवार कल्याण संघ का निर्माण व संघ के माध्यम से पुलिस कर्मियों की विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन जो जारी हुआ वह अब धीरे धीरे जोर पकड़ता जा रहा है और पुलिस परिवार संघ पुनः आंदोलन की राह पर हैं। पुलिस विभाग में पुलिसकर्मियों व पुलिस अधिकारियों के वेतन भत्तों में आपसी विसंगतियों का अंतर इतना ज्यादा है कि पुलिसकर्मी अब विसंगतियों को दूर करने एक संघ का निर्माण करना चाहते हैं और उसी के मध्यम से अपनी मांग सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं वहीं बताया जाता है कि इसके विपरीत अधिकारियों का अपना संघ है और वह अपने अधिकारों के लिए सजग रहकर हमेशा अपनी मांगे मनवाते रहते हैं, पुरवर्ती भाजपा सरकार में पुलिस परिवार कल्याण संघ का निर्माण कर इसी लिए पुलिसकर्मियों की जायज मांगो को लेकर आवाज उठाई थी पुलिसकर्मियों के परिजनों ने और जिसमें कुछ पुलिसकर्मी जो प्रत्यक्ष शामिल हुए थे या आंदोलन को समर्थन दिए थे उन्हें बर्खास्तगी भी झेलनी पड़ी थी। पुरवर्ती भाजपा सरकार के कड़े रुख अख्तियार करने की वजह से उस समय का पुलिस परिवार आंदोलन कमजोर जरूर पड़ गया था लेकिन भाजपा को सत्ता से हांथ धोना पड़ा था और पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरा न करना भी इसका एक कारण था ऐसा कहना गलत नहीं होगा।
पुलिसकर्मियों की मांगों को जनघोषणा-पत्र में शामिल किया था कांग्रेस ने
छत्तीसगढ़ में विपक्ष की भूमिका में रहने के दौरान चुनाव पूर्व छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी की चुनाव पूर्व जारी जनघोषणा पत्र में पुलिसकर्मियों के मांगो को जायज मानकर उन्हें पूर्ण करने का विश्वास जनघोषणा पत्र में मांगो को स्थान देकर किया गया था जिसकी वजह से पुलिसकर्मियों सहित उनके परिवार का विश्वास कांग्रेस की ओर बढ़ा था और सरकार बन सकी यह भी मान्य तथ्य है,जबकि सरकार बनते ही पुलिसकर्मियों की मांगों को लेकर ठोस निर्णय नहीं लिया गया जिससे वह पुनः आंदोलन की राह पर हैं। कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी सम्हालने वालों की मांगों को लेकर ही सरकारें गंभीर नहीं। प्रदेश में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने वाले पुलिसकर्मियों की ही मांगो को लेकर सरकारें गंभीर नजर नहीं आ रहीं हैं, पुलिसकर्मियों की मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है, पुलिस अधिकारियों व पुलिसकर्मियों के वेतन भत्तों में जिस तरह का अंतर है उससे यह साफ जाहिर भी है कि सरकार पुलिसकर्मियों की मांगों के प्रति गंभीर नहीं है, जबकि सरकार को चुनाव पूर्व अपनी जनघोषणा पत्र में किये वादे अनुसार उनके हित संदर्भ में निर्णय लेकर निश्चित लाभ प्रदान करना चाहिए और यही पुलिसकर्मियों सहित उनके परिजनों की मांग है।
वर्षों पुराने अंग्रेजों के जमाने मे बने नियम आज भी पुलिसकर्मियों पर लागू
आज जब अपराधी भी आधुनिक हथियारों से लेकर हाइटेक अपराध कारित कर रहा है,हवा से बातें करने वाली गाçड़यों से अपराध घटित कर फरार हो रहा है पुलिसकर्मियों को अंग्रेजों के जमाने मे बने नियमों के तहत वेतन व भत्ते दिए जा रहें हैं वाहन भत्ते की जगह आज भी पुलिसकर्मियों को सायकल भत्ता मिल रहा है, आज शायद ही कोई पुकिसकर्मी सायकल से अपने कार्यस्थल जाता हो लेकिन भत्ते के रूप में वाहन के उसे सायकल का ही भत्ता मिलता है वह भी 100 रुपये मासिक दिए जाते हैं, आज जब 100 रुपये से भी ज्यादा कीमत पर एक लीटर पेट्रोल मिल रहा है पुकिसकर्मी 100 रुपये का मासिक सायकल भत्ता प्राप्त कर रहा है, वहीं आवागमन भत्ता 80 रुपये, पौष्टिक आहार,वर्दी सिलाई, वर्दी धुलाई इस तरह के जितने भी अनिवार्य भत्ते हैं पुलिसकर्मीयों को आज भी पुराने दर पर ही मिल रहे हैं और यह अधिकारियों को मिलने वाले भत्तों से कई गुना कम है।
निरीक्षक से आरक्षक तक भत्ते हैं समान
पुलिस विभाग में 1956 में बने नियम अनुसार निरीक्षक से आरक्षक तक 100 रुपये का सायकल भत्ता प्राप्त करते हैं, आज जब आधुनिक युग मे सभी पुकिसकर्मी ईंधन चलित वाहनों का उपयोग कर रहें हैं और वहीं पुलिस मुख्यालय की तरफ से भी शासन को सायकल भत्ते की जगह ईंधन चलित वाहन भत्ता देने का प्रस्ताव भेजा जा चुका है फिर भी शासन स्तर से इसको लेकर कोई निर्णय आता दिखाई नहीं दे रहा है वहीं इसको लेकर शासन गंभीर भी नजर नहीं आ रही है,विभाग के उच्चाधिकारियों को भी सायकल भत्ता उचित नहीं लगता उनका मानना है कि आधुनिक युग में अपराध का भी स्वरूप बदल चुका है तकनीकियों का इस्तेमाल अपराधी भी कर रहें हैं वहीं आधुनिक गाçड़यों का भी उपयोग अपराधी कर रहें हैं इंटरनेट और सायबर अपराध के लिए पुकिसकर्मी तैयार किये जा रहें है ऐसे में हाइटेक किये जा रहे पुलिसकर्मीयों को सायकल भत्ता देना उचित नहीं है।
सरकार बदली नहीं बदले नियम
प्रदेश में पुरवर्ती भाजपा शासनकाल से ही पुलिस आंदोलन का जन्म हुआ, तत्कालीन सरकार ने मांगो को अनदेखा किया वह सत्ता से बाहर हैं वहीं नई सरकार जिसने वादा किया चुनाव पूर्व की सरकार बनते ही पुलिसकर्मियों की मांगों का निराकरण होगा वह भी अब तक मांगो को लेकर मौन है पुकिसकर्मी 11 सूत्रीय मांगों के साथ अपने परिवार वालों को सामने रखकर आंदोलन कर रहें हैं और यह उनकी मजबूरी है क्योंकि सेवा शर्तों अनुसार वह आंदोलन में भाग नहीं ले सकते,पुलिसकर्मियों की प्रमुख मांगे जिनको लेकर आंदोलन जारी है उसमे सायकल भत्ते की जगह ईंधन चलित वाहन भत्ता दिया जाय, पौष्टिक आहार भत्ता, वर्दी धुलाई भत्ता, मेडिकल भत्ता, मकान भत्ता, वर्दी सिलाई भत्ता बढ़ाया जाए। अब देखना यह है कि सरकार पुलिसकर्मियों के परिजनों को किस तरह संतुष्ट कर पाती है और उनकी किन मांगो को पूरा कर पाती है।
सप्ताहिक आकाश भी कागजों में
सप्ताहिक आकाश को लेकर सरकार अपनी उपलब्धि गिना रही हैं पर वास्तव में जमीनी स्तर पर इसका परिपालन होता नहीं दिख रहा है, सिर्फ यह सुनने को मिलता है कि सप्ताहिक आकाश पुलिस कर्मियों को मिलने पर वास्तव में लगभग जिलों में सप्ताहिक अवकाश मिलता पुलिसकर्मियों को नहीं दिख रहा है, ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि जब सप्ताहिक आकाश देने की अनुमति मिल चुकी है फिर भी सप्ताहिक आकाश क्यों नहीं मिल रहा? क्या सिर्फ आदेश कागजों के लिए ही हुए हैं या फिर वास्तविकता में पुलिसकर्मियों को इसका लाभ देना है?