नई दिल्ली @ जज के दरवाजे पर पहुंची नगद राशि,मामला दर्ज

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न्यायपालिका पर उठता सवाल


नई दिल्ली ,07 नवंबर 2021 (ए)। भारत के न्यायपालिका पर सभी को विश्वास है लेकिन जब न्यायपालिका को संचालित करने वाले पर ही दाग लग जाये तो सवाल तो उठना लाजमी है। इससे लोगों का न्याय से भरोसा उठने लगता है। ऐसा ही मामला न्यायमूर्ति ‘निर्मलजीत’ और न्यायमूर्ति ‘निर्मल यादव’ के बीच का है। न्यायमूर्ति निर्मलजीत कौर के घर पंद्रह लाख रुपये पहुँचता है, जो बताया जाता है कि ये रकम न्यायमूर्ति निर्मल यादव के घर पहुंचना था। भले ही गलत जगह रकम पहुंचता है लेकिन है तो गलत ही न।
अब शिकायत के बाद मामला कोर्ट पहुंचता तो जरूर है, लेकिन 2008 से लेकर 13 साल बीत गए हैं पर दोषी कौन ये निर्णय अब तक नहीं हुआ। इस बीच दोनों ही जज रिटायर भी हो गए पर मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है। अब नयी के सिस्टम पर आम लोगों का भरोसा कैसे बने ये सोच का विषय तो हैज्
न्यायमूर्ति ‘निर्मलजीत’ के विरोध में न्यायमूर्ति ‘निर्मलजी’ को पैसे देने की संभावित गड़बड़ी ने इस तरह एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के मुकदमे को जन्म दिया।
न्यायमूर्ति निर्मलजीत कौर को 10 जुलाई, 2008 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। न्यायाधीश के रूप में लगभग एक महीने के बाद, 13 अगस्त, 2008 को लगभग 8:30 बजे, प्रकाश नामक व्यक्ति उनके घर पर आया। उसके हाथ में प्लास्टिक की थैली थी और उसने चपरासी अमरीक सिंह को सूचित किया कि वह दिल्ली से कागज देने के लिए आए हैं। अमरीक सिंह प्लास्टिक बैग को अंदर ले गया। जस्टिस कौर के निर्देश पर उन्होंने बैग खोला, जिसमें नोट थे। तुरंत ही प्रकाश को पकड़ लिया गया और उसे स्थानीय पुलिस के हवाले कर दिया गया। पुलिस के पूछताछ में पता चला कि प्रकाश हरियाणा के तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल का लिपिक था। नोटों की गणना के दौरान बैग में 15 लाख रुपये पाई गई।
अपने क्लर्क की गिरफ्तारी के बारे में पता चलने के बाद, अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल ने थाने में जाकर अपना बयान दर्ज कराया कि उक्त पैसे को रविंदर सिंह ने निर्मल सिंह नाम के एक व्यक्ति के घर पर पहुंचाने के लिए उसे सौंप दिया था। हालांकि, उसका क्लर्क प्रकाश इस पते पर पैसे ले जाने के बजाय गलती से उसे जज के घर ले गया।
बंसल द्वारा दिए गए सभी दस्तावेज जाली पाए गए, और उन्होंने जो कहानी प्रस्तुत की वह झूठी पाई गई। यह सामने आया कि पैसा न्यायमूर्ति निर्मलजीत कौर के लिए नहीं था, बल्कि उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश – न्यायमूर्ति निर्मल यादव के लिए था। इस तरह ‘निर्मलजीत’ के विरोध में ‘निर्मलजी’ को पैसे देने की संभावित गड़बड़ी ने उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के मुकदमे को हवा दी। इसके बाद जो घटनाएँ सामने आईं, वे बहुत ही रोचक हैं।


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