-डॉ.राजकुमार मिश्र-
अम्बिकापुर,19 अक्टूबर 2021 (ए)। पत्थलगांव में प्रतिमा विसर्जन के श्रद्धालुओं पर पीछे से दनदनाती हुई एक कार टूट पड़ी और कई लोग हताहत होकर सड़क पर बिखर गए। लोगो ने गांजा लदी कार को जला दिया उसके चालक समेत दो आरोपी पुलिस को सौंप दिए।तीन दिनों तक कलेक्टर एसपी और आईजी पब्लिक के रंजोगम सुनते रहे ( अखबारों के मुताबिक,जमीनी हकीकत को बारीकी से समझते रहे ) फिर जो कार्यवाही हुई वह एसपी साहब ने की।पत्थलगांव थाने के लगभग सभी पुलिसियों को यहां वहां और लाइन में भेज दिया।फिर बयान देने की औपचारिकता निभाते हुए बिरादराना सौम्यता से कूट कूट कर भरा हुआ वक्तव्य यह दिया कि सम्बंधित पुलिसिये काफी अरसे से एक ही जगह पड़े हुए थे इसलिए उन्हें तीतर बितर कर दिया गया।
एसपी ने उक्त घटना को पुलिसवालों की घूसखोरी का परिणाम नही माना।उंन्होने यह नही कहा कि उन्होंने लापरवाही की सजा देने के लिए उक्त मातहतों को बेहद मलाईदार थाने से हटा दिया।जनता की शिकायतों के कारण हटाया।वह तो तबादलों और अटैचमेंट की अलग ही, औपचारिक-सी वजह ही, बताकर रह गए।
वह ज्वलंत सवाल धरा ही रह गया कि श्रद्धालुओ से भरे मार्ग पर मध्यप्रदेश के गांजा तस्करों की कार आखिर पहुंची कैसे?कमसेकम पचास सालो से उक्त कार्यक्रम आयोजित होता आया है।पुलिस प्रशासन बड़ी मुस्तैदी से उस रास्ते पर किसी भी वाहन को जाने की अनुमति नही देता था।फिर मौजूदा एसपी अग्रवाल साहब के ही कार्यकाल पर मातहतों ने यह अमिट धब्बा कैसे लगा दिया।पूरे पत्थलगांव अंचल में तरह तरह की अफवाहें फैली हुई हैं।हम किसीकी भी पुष्टि नही कर सकते।सबसे ज्यादा चल रही इस कानाफूसी को भी सच नही कह सकते कि मप्र के जो गांजा तस्कर पकड़ में आए उनके रिश्ते मप्र भाजपा से रहे हैं और वहां का गांजा माफिया हर मोड़ पर खड़े दिखने वाले पुलिसियों के मेन स्विच को मैनेज किए बगैर अपने प्यादों को नशे के जखीरे से लदे वाहन स्टार्ट तक नही झरने देते।जिस दिन वह दिल हिला देनेवाली दुर्घटना हुई थी उसी दिन उसी समय से हर चैनल पर यही एक सवाल चीख चीख कर जबाब मांग रहा था कि आखिर वाहनों के लिए निषिद्ध मार्ग पर गांजे से भरा वाहन पूरी रफ्तार से आ कैसे गया।मगर किसी भी आला हजरत ने जबाब में एक शब्द भी नही कहा।जमीन पर दिखनेवाला न्याय तो यह हो सकता था कि जिन पुलिसियों को इधर उधर किय्या गया उन्हें तत्काल सस्पेंड करके किनारे किय्या जाता।मगर कानून से ज्यादा अपने साहब बहादुरों की खिदमत में खपते रहनेवाले मातहतों का मनोबल कमजोर करके कोई खुश नही रह सकता।यही अंतिम सत्य इस मामले में नजर आ रहा है,यही लब्बो लुआब है।
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