नई दिल्ली ,,05 अक्टूबर 2021(ए)। देश में आने वाले कुछ सप्ताह में तापमान में कमी के साथ बढ़ सकता है प्रदूषण, कोरोना से स्वस्थ हुए कई लोगों के फेफड़े हो गए हैं कमजोर. बरतनी होगी सावधानी.बाहर जाते समय लगाएं मास्क.स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए भाप लेना और अधिक मात्रा में पेय पदार्थों का करना होगा सेवन.अगले कुछ सप्ताह में मौसम में बदलाव होना शुरू हो जाएगा.तापमान में गिरावट आने के साथ प्रदूषण का स्तर बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है.इससे कोविड से स्वस्थ हुए लोगों को काफी परेशानी हो सकती है. डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के बाद जिन लोगों के फेफड़े प्रभावित हुए हैं उनको विशेष देखभाल करनी होगी. लापरवाही बरतने से हालात बिगड़ सकते हैं.
दिल्ली के सफरदजंग अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर जुगल किशोर ने बताया कि पोस्ट कोविड समस्याओं में सांस संबंधी परेशानियां सबसे अधिक देखी जा रही है. इससे पता चलता है कि कोरोना से स्वस्थ होने वालों के फेफड़े प्रभावित हुए हैं. ऐसे में अगर प्रदूषण का स्तर बढ़ा तो इन लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.क्योंकि प्रदूषण बढ़ने से हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा काफी बढ़ जाती है. लंबे समय तक पीएम 2.5 कणों के संपर्क के रहने से वायु प्रदूषण से संबंधित जोखिम शरीर में पैदा होने लगता है. इस कारण से इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। इम्युनिटी कम होने से शरीर में कई बीमारियां होने लगती है
खतरनाक साबित हो सकता है प्रदूषण
दिल्ली नगर निगम के वरिष्ठ डॉक्टर अजय कुमार बताते हैं कि अगर वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा होता है तो अनेक प्रकार की सांस संबंधी परेशानियां पैदा कर देता है.जिन लोगों के फेफड़े पहले से ही कमजोर हैं उन्हें खराब हवा में सांस लेने में काफी परेशानी होती है.जो खतरनाक साबित हो सकता है.इसलिए जो लोग सांस सबंधी परेशानियों का सामना कर रहे हैं.उन्हे सावधान रहने की जरूरत है.इसके अलावा उन लोगों को भी ध्यान रखना होगा जो अस्थमा से पीडि़त हैं.
इसलिए होती है परेशानी
डॉक्टर के मुताबिक, ठंड के मौसम में धूल के कण दूसरे प्रदूषित कणों के साथ मिलकर वाहक का काम करते हैं, जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित सांस के मरीज होते हैं. धूल, प्रदूषण, धुंआ सहित कुछ कारणों के सक्रिय हो जाने से ये चीजें उनके मर्ज के लिए ट्रिगर का काम करती हैं. श्वास संबंधी रोगियों को इस दौरान ज्यादा दिक्कत इसलिए भी होती है, क्योंकि जैसे-जैसे वातावरण में प्रदूषण बढ़ता है, उससे फेफड़ों के मरीजों की दिक्कतें बढ़ जाती हैं.